भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
499 bytes added,
06:19, 29 सितम्बर 2010
{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=एक बहुत कोमल तान लिखे में दुक्ख / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
पानी मांगते ही श्रमिक होती हैं मधुमक्खियां बंध जाती है हथेलियां फूलों से पराग सिर झुक जाता है और मकरंद करती हैं इकट्ठा अपने टांगों में बनी उस टोकरी में जो दीखती नहीं
इसमें लिखा है मधुमक्खियां तैयार दुनिया को जीतने का मंत्र करती हैं शहद 00और करती हैं रक्षा बाहरी आक्रमण से उसकी घिरे हुए हैं हम अनेक दुश्मनों से और रक्षा नहीं कर पाते हमने मधुमक्खियों से सीखा नहीं यह मंत्र