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{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=लिखे में दुक्ख / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
परिंदों की तरह
सफर में रहने वाले
ये मजूर
आज इतवार को रूके हैं
उस नीलगूं तलहटी में
वहां दहक रहा है अलाव
आग के चारों तरफ
मदमस्त होकर नाच-गा रहे हैं
ये परिंदे आज पिकनिक मना रहे हैं
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|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=लिखे में दुक्ख / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
परिंदों की तरह
सफर में रहने वाले
ये मजूर
आज इतवार को रूके हैं
उस नीलगूं तलहटी में
वहां दहक रहा है अलाव
आग के चारों तरफ
मदमस्त होकर नाच-गा रहे हैं
ये परिंदे आज पिकनिक मना रहे हैं