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जयकृष्ण राय तुषार

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कोई पूजा में रहे कोई अजानों में रहेहर कोई अपने इबादत के ठिकानों में रहे। अब फिजाओं में न दहशत हो, न चीखें, न लहूअम्न का जलता दिया सबके मकानों में रहे। ऐ मेरे मुल्क मेरा ईमां बचाये रखनाकोई अफवाह की आवाज न कानों में रहे। मेरे अशआर मेरे मुल्क की पहचान बनेंकोई रहमान मेरे कौमी तरानें में रहे। बाज के पंजों न ही जाल, बहेलियों से डरेये परिन्दे तो हमेशा ही उड़ानों में रहे। * [[हम तो मिट्‌टी के खिलौने थे गरीबों में रहेचाभियों वाले बहुत ऊंचे घरानों में रहे। वो तो इक शेर था जंगल से खुले में आयाये शिकारी तो हमेशा ही मचानों में रहे।/ जयकृष्ण राय तुषारजयकृष्ण राय तुषार ]]