Changes

सबसे ऊँची प्रेम सगाई / सूरदास

3,177 bytes added, 19:18, 29 सितम्बर 2010
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} [[Category:पद]] राग भीमपलासी--तीन ताल <poem> सबसे ऊ…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सूरदास
}}
[[Category:पद]]
राग भीमपलासी--तीन ताल

<poem>
सबसे ऊँची प्रेम सगाई।
दुर्योधन की मेवा त्यागी, साग विदुर घर पाई॥
जूठे फल सबरी के खाये बहुबिधि प्रेम लगाई॥
प्रेम के बस नृप सेवा कीनी आप बने हरि नाई॥
राजसुयज्ञ युधिष्ठिर कीनो तामैं जूठ उठाई॥
प्रेम के बस अर्जुन-रथ हाँक्यो भूल गए ठकुराई॥
ऐसी प्रीत बढ़ी बृन्दाबन गोपिन नाच नचाई॥
सूर क्रूर इस लायक नाहीं कहँ लगि करौं बड़ाई॥
</poem>

भावार्थ:-
सूरदास जी कहते हैं कि परस्पर प्रेम का रिश्ता ही भगवान की दृष्टि में बड़ा रिश्ता है। अभिमान के साथ आदर देने वाले दुर्योधन की परोसी हुई मेवा को त्यागकर भगवान कृष्ण ने विदुर द्वारा प्रेम और आदर के साथ हरी पत्तियों से बनाया साग ग्रहण किया। प्रेम के वशीभूत राम ने शबरी नाम की भील स्त्री के जूठे बेर खाए थे। प्रेम के वशीभूत ही भगवान कृष्ण अपने भक्त नरसिंह मेहता के नाई अर्थात् संदेशवाहक बनकर गए थे। प्रेम के वशीभूत ही उन्होंने युधिष्ठिर द्वारा किए गए राजसूय यज्ञ में जूठी पत्तलें स्वयं उठाई थीं। प्रेम के कारण ही महाभारत-युद्ध के दौरान उन्होंने अर्जुन के रथ का सारथि बनना स्वीकार किया था। गोपियों के निष्काम-प्रेम के तो भगवान इतने वशीभूत हो गये कि उनके कहे अनुसार ही नाचते थे अर्थात् जैसा वह कहती थीं वैसा ही वे करते थे। सूरदास कहते हैं कि मेरा मन तो कठोर है, उसमें प्रेम नहीं है इसलिए मैं भगवान की प्रशंसा भी बहुत अधिक नहीं कर पाता हूँ।