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अन्वेषण / रामनरेश त्रिपाठी

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|रचनाकार=रामनरेश त्रिपाठी
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<poem>
मैं ढूँढता तुझे था, जब कुंज और वन में ।
तू खोजता मुझे था, तब दीन के सदन में ।।
मैं ढूँढता तुझे थातू 'आह' बन किसी की, जब कुंज और वन में।<br>मुझको पुकारता था ।तू खोजता मुझे मैं थातुझे बुलाता, तब दीन के सदन में॥<br><br>संगीत में भजन में ।।
तू 'आह' बन किसी कीमेरे लिए खड़ा था, मुझको पुकारता था।<br>दुखियों के द्वार पर तू ।मैं बाट जोहता था तुझे बुलाता, संगीत तेरी किसी चमन में भजन में॥<br><br>।।
बनकर किसी के आँसू, मेरे लिए खड़ा था, दुखियों के द्वार पर तू।<br>बहा तू ।मैं बाट जोहता थाआँखे लगी थी मेरी, तेरी किसी चमन में॥<br><br>तब मान और धन में ।।
बनकर किसी के आँसूबाजे बजाबजा कर, मेरे लिए बहा तू।<br>मैं था तुझे रिझाता ।आँखे लगी थी मेरी, तब मान और धन में॥<br><br>तू लगा हुआ था, पतितों के संगठन में ।।
बाजे बजाबजा कर, मैं था तुझे रिझाता।<br>विरक्त तुझसे, जग की अनित्यता पर ।तब तू लगा हुआ उत्थान भर रहा था, पतितों के संगठन में॥<br><br>तब तू किसी पतन में ।।
मैं था विरक्त तुझसेबेबस गिरे हुओं के, जग की अनित्यता पर।<br>तू बीच में खड़ा था ।उत्थान भर रहा मैं स्वर्ग देखता था, तब तू किसी पतन में॥<br><br>झुकता कहाँ चरन में ।।
बेबस गिरे हुओं के, तूने दिया अनेकों अवसर न मिल सका मैं ।तू बीच कर्म में खड़ा था।<br>मैं स्वर्ग देखता मगन था, झुकता कहाँ चरन में॥<br><br>मैं व्यस्त था कथन में ।।
तूने दिया अनेकों अवसर न मिल सका मैं।<br>तेरा पता सिकंदर को, मैं समझ रहा था ।पर तू कर्म में मगन बसा हुआ था, मैं व्यस्त था कथन में॥<br><br>फरहाद कोहकन में ।।
तेरा पता सिकंदर कोक्रीसस की 'हाय' में था, मैं समझ रहा था।<br>करता विनोद तू ही । पर तू बसा हुआ अंत में हँसा था, फरहाद कोहकन में॥<br><br>महमूद के रुदन में ।।
क्रीसस की 'हाय' में प्रहलाद जानता था, करता विनोद तू ही।<br>तेरा सही ठिकाना ।तू अंत में हंसा ही मचल रहा था, महमूद के रुदन में॥<br><br>मंसूर की रटन में ।।
प्रहलाद जानता था, तेरा सही ठिकाना।<br>आखिर चमक पड़ा तू गाँधी की हड्डियों में ।तू ही मचल रहा मैं थातुझे समझता, मंसूर की रटन में॥<br><br>सुहराब पीले तन में ।।
आखिर चमक पड़ा तू गाँधी की हड्डियों में।<br>मैं था कैसे तुझे समझतामिलूँगा, सुहराब पीले तन में।<br><br>जब भेद इस कदर है ।हैरान होके भगवन, आया हूँ मैं सरन में ।।
कैसे तुझे मिलूँगा, जब भेद इस कदर है।<br>तू रूप कै किरन में सौंदर्य है सुमन में ।हैरान होके भगवनतू प्राण है पवन में, आया हूँ मैं सरन में॥<br><br>विस्तार है गगन में ।।
तू रूप कै किरन ज्ञान हिन्दुओं में सौंदर्य है सुमन में।<br>, ईमान मुस्लिमों में ।तू प्राण है पवन प्रेम क्रिश्चियन में, विस्तार तू सत्य है गगन में॥<br><br>सुजन में ।।
हे दीनबंधु ऐसी, प्रतिभा प्रदान कर तू ज्ञान हिन्दुओं देखूँ तुझे दृगों में, ईमान मुस्लिमों में।<br>तू प्रेम क्रिश्चियन मन में, तू सत्य है सुजन में॥<br><br>तथा वचन में ।।
हे दीनबंधु ऐसीकठिनाइयों दुखों का, प्रतिभा प्रदान इतिहास ही सुयश है ।मुझको समर्थ कर तू।<br>देखूँ तुझे दृगों मेंतू, मन बस कष्ट के सहन में तथा वचन में॥<br><br>।।
कठिनाइयों दुखों का, इतिहास ही सुयश है।<br>मुझको समर्थ कर तू, बस कष्ट के सहन में॥<br><br> दुख में न हार मानूँ, सुख में तुझे न भूलूँ।<br>भूलूँ ।ऐसा प्रभाव भर दे, मेरे अधीर मन में॥<br>में ।।<br/poem>
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