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मेरी सांसों साँसों की घड़ियां बिखरती रहीं।<br>
फूल से पंखुरी जैसे झरती रही ॥<br><br>
वक़्त के हाथों में, मैं बड़ी हो गई,<br>
माँ की चिन्ता की घड़ियां बढ़ती रहीं।<br>
मेरी सांसों साँ सों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
ब्याह-कर मैं पति के घर आ गई,<br>
माँ की ममता सिसकियां भरती रही।<br>
मेरी सांसों साँसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
छोड़कर माँ को,दिल के दो टुकड़े हुए,<br>
फिर भी जीवन का दस्तूर करती रही।<br>
मेरी सांसों साँसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
वक़्त जाता रहा मैं तड़पती रही,<br>
देखते-देखते वह बड़ी हो गई,<br>
ब्याह-कर दूर देश में बसती रही।<br>
मेरी सांसों साँसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
टूटकर फिर से दिल के हैं टुकड़े हुए,<br>
मेरी ममता भी पल-पल तरसती रही।<br>
मेरी सांसों साँसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
वक़्त ढ़लता रहा, सपने मिटते रहे,<br>
इक दिन माँ न रही, मैं सिसकती रही।<br>
मेरी सांसों साँसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
सब कुछ मिला पर मां माँ न मिली,<br>मां माँ की छबि ले मैं दिल में सिहरती रही।<br>मेरी सांसों साँसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
फूल मुरझा के इक दिन जमीं पर गिरा,<br>
मेरी सांसों साँसों की घड़ियां दफ़न हो रहीं।<br>मेरी सांसों साँसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
जीवन का नियम यूं ही चलता रहे,<br>
ममता खोती रही और मिलती रही।<br>
मेरी सांसों साँसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
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