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{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
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ब्रह्माण्ड की आयु से भी ज़्यादा वक्त लगेगा
अगर हम जानने चलें कि एक पेड़ की डाल
कहाँ कहाँ मुड़ सकती है साँप सी बलखाती

मुड़ना है चिड़ियों से बतियाना है
हवा की सरसराहट के लिए पत्तों को सजाना है
यह सब डाल करती है एक जीवन काल में
यह समझने लगे हैं हम
जब भूल चले अपनी राहें ढूँढने के नियम

सारे रहस्य सुलझ जाएँगे
और देखेंगे हम कि
बाकी है जाननी
खुद को दुबारा लकीर पर लाने की तरकीब
दुबारा शब्द प्रेम ढूँढने के लिए
निकलेंगे हम बीहड़ों में.
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