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<poem>
नदी मुझसे कहे इस पार आओ
हवा कहती है बरखुरदार, आओ

यहाँ तामीर से क्या फायदा है
गिरानी हो अगर दीवार, आओ

हमें मजमा लगाने से गरज क्या
इरादे ले के बस दो-चार आओ

बहुत यूसुफ बने फिरते हो,कीमत
पता चल जायेगी, बाजार आओ

वो पिछली रुत फकत इक हादसा थी
सभी इस बार हैं तैयार, आओ

मैं समझा सिर्फ मुझ पर है मुसीबत
घुटन से तुम भी हो बेजार, आओ

चलो देखो तो सर्वत की लगन से
ये सहरा हो गया गुलजार, आओ</poem>
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