भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<Poem>
धान जब भी फूटता है गाँव में
एक बच्चा दुधमुँहा:किलकारियाँ भरता हुआ
आ लिपट जाता हमारे पाँव में।
फैल जाती है सिघाड़े की लतर-सी
पीर मन की :छेंकती है द्वारतोड़ते किस तरह :मौसम के थपेड़े
जानती कमला नदी की धार