भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
[[Category:गीत]]
 <poem>
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में, ह्ड़ताल हमारा नारा है !
 
तुमने माँगे ठुकराई हैं, तुमने तोड़ा है हर वादा
 
छीनी हमसे सस्ती चीज़ें, तुम छंटनी पर हो आमादा
 
तो अपनी भी तैयारी है, तो हमने भी ललकारा है
 
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !
 
मत करो बहाने संकट है, मुद्रा-प्रसार इंफ्लेशन है
 
इन बनियों चोर-लुटेरों को क्या सरकारी कन्सेशन है
 
बगलें मत झाँको, दो जवाब क्या यही स्वराज्य तुम्हारा है ?
 
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !
 
मत समझो हमको याद नहीं हैं जून छियालिस की रातें
 
जब काले-गोरे बनियों में चलती थीं सौदों की बातें
 
रह गई ग़ुलामी बरकरार हम समझे अब छुटकारा है
 
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर हड़ताल हमारा नारा है !
 
क्या धमकी देते हो साहब, दमदांटी में क्या रक्खा है
 वह वार तुम्हारे अग्रज अंग्रज़ों अँग्रज़ों ने भी तो चक्खा है 
दहला था सारा साम्राज्य जो तुमको इतना प्यारा है
 
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !
 
समझौता ? कैसा समझौता ? हमला तो तुमने बोला है
 
महंगी ने हमें निगलने को दानव जैसा मुँह खोला है
 
हम मौत के जबड़े तोड़ेंगे, एका हथियार हमारा है
 
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर हड़ताल हमारा नारा है !
 
अब संभले समझौता-परस्त घुटना-टेकू ढुलमुल-यकीन
 
हम सब समझौतेबाज़ों को अब अलग करेंगे बीन-बीन
 
जो रोकेगा वह जाएगा, यह वह तूफ़ानी धारा है
 
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !
 
(1949 में रचित )
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,606
edits