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06:34, 25 अक्टूबर 2010
<poem>
'''1.
मोह को घर-बार पेड़ हैं लचकेंगे, फिर सीधे खड़े हो जाएँगे नाचते गाते रहेंगे, आँधियों के मत साथ में लेकर चलो दरमियाँ यात्रा आपदाओं से जब भी लौटोगे तो घर कहाँ धूमिल हुई जीवन की जोत फूल खिलते आ जाएगा रहे हैं कंटकों के दरमियाँसिर्फ़ साहस ही नहीं, धीरज भी तो दरकार है सीढि़याँ चढ़ते रहो, अंतिम शिखर आ जाएगा
'''2.
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