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मैं अपने में कोरा-सादा
मेरा कोई नहीं इरादा
ठोकर मर-मारकर तुमने
बंजर उर में शूल उगाए ।
मेरी निंदियारी आँखों का-
गहन गगन से रहा न नता,
क्यों तुमने तारे तुड़वाए ।
मेरी बर्फ़ीली आहों का
बुझी धुआँती-सी चाहों का-
क्या था? घर में आग लगाकर
तुमने बाहर दिए जलाए !
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