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|रचनाकार=मनोज भावुक
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
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हिया के पीर छलकके गजल में आइल बा
तबे सुनत त नयन लोग के लोराइल बा
कबो-कबो ऊ अकेला में बुदबुदाताटे
बुझात बा कि बेचारा बहुत चुसाइल बा
देखाई आजले हमरा ना ऊ पड़ल कबहूँ
हिया में, साँस में, धड़कन में जे समाइल बा
कहा सकल ना कबो हाल दिल के तहरा से
मगर ई साँच बा, तहरे में दिल हेराइल बा
निकल के आईं कबो ख्वाब से हकीकत में
परान रउरे भरोसा प अब टँगाइल बा
शहर कहीं ना बने गाँव अपनो ए 'भावुक'
अँजोर देख के मड़ई बहुत डेराइल बा
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