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नया पृष्ठ: KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज भावुक }} [[Category:ग़ज़ल]] <poem> दिल में प्यारे के बीआ …
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{{KKRachna
|रचनाकार=मनोज भावुक
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
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दिल में प्यारे के बीआ बोआ जब गइल,
प्रीत के तब फसल लहलहइबे करी
एह तरे जो मिलइहें नजर से नजर,
लाज में तन में सिहरन समइबे करी

दिल के दुइयो घरी जे रखे कैद में,
ऊ कहाँ बा कहीं जेलखाना बनल
दिल परिन्दा हऽ, लइका हऽ, भगवान हऽ,
जवना अँगना में चाही, ऊ जइबे करी

फूल-कलियन के परदा में रख लीं भले,
रउरा खुशबू के परदा में रख ना सकब
झूम के जब चली कवनो पागल हवा,
भेद घर के ऊ रउरा बतइबे करी

लाश के ढेर पर जे बनत बाटे घर,
ओके मंदिर कहीं, चाहे मस्जिद कहीं
देवता दू घरी ना ठहरिहें उहाँ,
ऊ पिशाचन के डेरा कहइबे करी

के जरल, के मरल, के कटल, के धसल,
कुछ पता ना चलल, मामला दब गइल
एगो साजिश के कबले कहब हादसा,
चोर कहियो ना कहियो धरइबे करी

जुल्म 'भावुक' हो केतना ले केहू सही,
खून के घूंट कहिया ले केहू पीही
फेरु लंका लहकबे-दहकबे करी,
फेरु रावण मरइबे-जरइबे करी

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