भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
करोड़ों को हज़ारों में गिनावे धर्म का चक्कर
चमन में फ़ूल फूल ख़ुशियों के खिलाने की जगह लोगोंबुलों गुलों को खून ख़ून के आँसू रुलावे धर्म का चक्कर
कभी शायद सिखावे था मुहब्बत-मेल लोगों को