भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatKavita}}
<poem>
दो हज़ार मन गेहूं गेहूँ आया दस गांवों गाँवों के नामराधे चक्कर लगा काटने, सुबह हो गयी गई शाम
सौदा पटा बडी मुश्किल से, पिघले नेताराम
पूजा पाकर साध गये चुप्पी हाकिम-हुक्काम
भारत-सेवक जी को था अपनी सेवा से काम
खुला चोर-बाज़ार, बढा बढ़ा चोकर-चूनी का दाम
भीतर झुरा गयी ठठरी, बाहर झुलसी चाम
भूखी जनता की खातिर ख़ातिर आज़ादी हुई हराम
नया तरीका अपनाया है राधे ने इस साल