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|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
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इन सलाखों से टिकाकर भाल
 सोचता ही रहूंगा रहूँगा चिरकाल 
और भी तो पकेंगे कुछ बाल
 
जाने किस की / जाने किस की
 
और भी तो गलेगी कुछ दाल
 
न टपकेगी कि उनकी राल
 चांद चाँद पूछेगा न दिल का हाल 
सामने आकर करेगा वो न एक सवाल
 
मैं सलाखों से टिकाए भाल
सोचता ही रहूँगा चिरकाल
सोचता ही रहूंगा चिरकाल  (रचनाकाल : 1976)</poem>
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