|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
इन सलाखों से टिकाकर भाल
सोचता ही रहूंगा रहूँगा चिरकाल
और भी तो पकेंगे कुछ बाल
जाने किस की / जाने किस की
और भी तो गलेगी कुछ दाल
न टपकेगी कि उनकी राल
चांद चाँद पूछेगा न दिल का हाल
सामने आकर करेगा वो न एक सवाल
मैं सलाखों से टिकाए भाल
सोचता ही रहूँगा चिरकाल
सोचता ही रहूंगा चिरकाल (रचनाकाल : 1976)</poem>