भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
|संग्रह=अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला";रागविराग / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
}}
{{KKCatKavitaKKCatKavita}}
<poem>
मेरा अन्तर वज्रकठोर,
देना जी भरसक झकझोर,
तम-निशि न कभी हो भोर,
क्या होगी इतनी उज्वलता-
इतना वन्दन अभिनन्दन?
हो मेरी प्रार्थना विफल,
हृदय-कमल-के जितने दल
मेरा जग हो अन्तर्धान,
तब भी क्या ऐसे ही तम में
अटकेगा जर्जर स्यन्दन?
</poem>