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{{KKRachna}}|रचनाकार=राम प्रकाश रामप्रकाश 'बेखुद'लखनवी |संग्रह=
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अपने हाथ अपना खून ख़ून चाहती है
ज़िन्दगी अब सुकून चाहती है
अब ज़मी नफ़रतो ज़मीं नफ़रतों की धूप नही नहीं
प्यार का मानसून चाहती है
भूक मे में कितने जिस्म ये धरती
प्यास मे कितना खून चाहती है
इक सुहागन जो ऊन चाहती है
ज़िन्दगी उम्र के दिसम्बर मेमें
फिर वही मई व जून चाहती है
और भी कुछ फ़ुनून चहती है
छत हमारे गुमान की ’बेखुद’’बेख़ुद’अब यकीं यक़ीं का सुतून चाहती है</poem>