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Kavita Kosh से
अपनी अपनी खूबियाँ और ख़ामियाँ भी बाँट लें
शोहरतें तो बाँट ली रुसवाइयाँ भी बाँट लें
बाँट ली आसानियाँ, दुशवारियाँ भी बाँट लें
आओ अपनी- अपनी ज़िम्मेदारियाँ भी बाँट लें
बँट गया है घर का आगनआँगन, खेत सारे बँट गए
क्यों न अब बंजर ज़मीं और परतियाँ भी बाँट लें