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|रचनाकार=रमानाथ अवस्थी
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चंदन है तो महकेगा ही
आग में हो या आँचल में
कितना ही भरमाओ तुम
घुंघरू है तो बोलेगा ही
सेज में हो या सांकल साँकल में
अपना सदा रहेगा अपना
ऐसे प्यारे मौसम में भी
शबनम रोई रात भर
दर्द है तो वह दहके गा दहकेगा ही
घन में हो या घानल में
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