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{{KKGlobal}}<poem>खीरा उछालतो आयो असाढ !{{KKRachnaलूवां री गांठड़ी लायो असाढ !|रचनाकार=साँवर दइया|संग्रह=हुवै रंग हजार / साँवर दइयाधोरां-धोरां बादळियां लारै,}}भटकतो फिरै तिरसायो असाढ ![[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]{{KKCatKavita}}ताम्बै वरणी हुयगी चामड़ी,बस पसेवो ई कमायो असाढ ! सांय-सांय, सांय-सांय, सांय-सांय,सड़कां माथै तरणायो असाढ ! रमता दीसै कोनी टाबरिया,गळी-गळी फूंफायो असाढ !<poem>रचना यहाँ टाइप करें</poem>
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