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अक्षरों में<br />खिले फूलों सी<br />रोज सांसों में महकती है।<br />ख्वाब में<br />आकर मुंडेरों पर<br />एक चिड़िया सी चहकती है।<br />
बिना जाने<br />और पहचाने<br />साथ गीतों के सफर में है,<br />दूर तक<br />प्रतिबिम्ब कोई भी नहीं<br />मगर वो मेरी नजर में है,<br />एक जंगल सा<br />हमारा मन<br />वो पलाशों सी दहकती है।<br />
बांसुरी<br />मैं होठ पर अपने<br />सुबह-शामों को सजाता हूं,<br />लोग मेरा<br />
स्वर समझते हैं<br />
मैं उसी की धुन सुनाता हूं,<br />