भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वे सफेद हाथ / नरेश अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाता था जब भी मैं
मिट्टी से खेलने
हाथ पकडक़र मॉं
ले जाती थी भीतर
हाथों में मिट्टी
चेहरे पर झुँझलाहट
सब कुछ बह जाता
पानी के साथ-साथ
वे सफेद हाथ
कितने गन्दे लगते थे मुझे ।