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शहर में जादूगर / ब्रजेश कृष्ण
Kavita Kosh से
माँ ने मुझे बताया था
कि शहर में कभी
एक जादूगर आया था
तभी से
तभी से हमें
एक दूसरे की चीखे़ं
सुनाई नहीं देतीं
तभी से शहर के सारे लोग
भूल गये अचानक
ऋतुओं, चिड़ियों और फूलों के नाम
तभी से पूरे शहर के छप्परों पर
बारिश की तरह
रात भर बजती है
फ़ौजी बूटों की धुन
और तभी से
कोई भी आदमी
कभी भी तब्दील हो जाता है
झपट्टा मारती चील में
मैं नहीं जानता
उस जादूगर का नाम पता ठिकाना
माँ कहती तो थी
कि जादूगर छिपा है इसी शहर में
कभी भी बैठ सकता है तुम्हारे कंधों पर
मैं अपने कंधे बचाते हुए
ढूँढ़ रहा हूँ जादूगर को हर गली में
मैं चील में तब्दील होने से पहले
मार गिराना चाहता हूँ उसे
ताकि मृत माँ से ही सही
कह तो सकूँ
यह रहा वो जादूगर!