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शायरों का उस समय यारों होता है इम्तिहान / बल्ली सिंह चीमा

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शायरों का उस समय होता है, यारो ! इम्तिहान ।
छीन ली जाए क़लम जब, काट दी जाए ज़ुबान ।

लाल टोपी देखते गर हो गया होता फ़रार,
जिस्म पर मेरे न होते आज ज़ख़्मों के निशान ।

ख़ूब हैं क़ानून काले ख़ूबियाँ तो देखिए,
झोंपड़ीं में ठीक थे, पर मिल गया है ये मकान ।

कोठियों को रोज़ ही तेवर बदलते देखकर,
झोंपड़ी भी हो रही है धीरे-धीरे सावधान ।