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शायरों का है ये मेला / कैलाश झा 'किंकर'

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शायरों का है ये मेला
है नहीं कोई अकेला।

हर तरफ़ ग़ज़लें हैं छायीं
आ गयीं खुशियों की बेला।

हम तो दिल्ली आ गये हैं
छोड़कर घर का झमेला।

दुश्मनों ने दोस्ती कीं
आपने क्या खेल खेला।

होगी बच्चों की हिफाजत
खत्म होते ही रुबेला।