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शैशव स्मृति-2 (कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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शैशव स्मृति-2 (कविता का अंश)
वह शाखा जिस पर खोला था
प्रेयसि ने अवगुंठन
वैसे ही आकार शान्त से
डुला रही पल्लव अंचल,
कुछ रहस्य- सा कहते फिर भी
तरू-पल्लव-हिलते,
कितने पत्र नवीन आ गये
रे उनसे मिलने
(शैशव स्मृति-2 जीतू से )