भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सखी ने आकर बात कही / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
सखी ने आकर बात कही॥
सुनत प्रिया प्रियतम कौ निस्चै, अतिसय हृदय दही।
सुखी भई प्रिय-कुसल जानि, सुनि आवन की जू कही॥
ग्रीषम की बरती बयार में, भई बिषम असही।
भई रीस पिय पर सुनि आवन, दया संग उमही॥
कह्यौ-’छाँह बैठइयौ, करि सीतल बयार तबहीं।
सीतल-सुरभित सलिल पियइयौ, करियौ हिरदै-चही॥
पुनि रिसाइ बैठी हौं तिन तैं, बोलूँगी न कही।
घाम सहत आए, क्योंमेरी मानी बात नहीं’॥
भरि बिषाद-अभिमान, मान करि रही, कुरेदि मही।
बैठी हर्ष-बिषाद भरे हिय, सोच न सकति सही॥