भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सच का शंख / मनोज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सच का शंख
सच
सिर्फ
और सिर्फ
एक छोटा शंख है
जो किसी नदी
या सागर-महासागर
के नितांत एकाकी तल पर
मिट्टी में सना
पड़ा हुआ है
सच का शंख
पूरी ताकत से फूंको,
नहीं बजेगा
और बजेगा भी
तो बहुत धीमा
यकीनना!
धीमी बजने वाली
हर चीज
हवा और प्रदूषण में
इस कदर घुल-मिल जाती है
कि उसमें आवाज़ बुनाने का
दमखम नहीं रह जाती
लिहाज़ा
सच के शंख को
ढूंढेगा कौन
अगर ढूंढ भी लिया
तो उसे बजाएगा कौन
और अगर बजा भी
तो उसे सुनेगा कौन
सच का शंख बजाने के लिए
सबसे पहले
ताकत तलाशनी होगी
उसे सुनने के लिए
मन का कपाट
खोलना होगा.