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सपना बना रहा सपना / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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सपना बना रहा सपना
हो न सका कोई अपना

पत्थर दिल न पसीज सका
व्यर्थ हुआ जलना-तपना

शासक, अमर शहीदों का
भूल गए मरान-खपना

हत्याओं-अपहराणों की
आम हुआ ख़बरें छपना

छुरी बगल में छपी हुई
राम-नाम मुख से जपना

देखा जस उस रूपसि को
बन्द हुआ पलकें झपना

कंचन-सी काया को है
माटी में मिल कर खपना