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सपने / आभा पूर्वे
Kavita Kosh से
सपने जो कल तक
मैंने बुने थे
वह आज तक
मेरे अपने
न हो सके
आज जब
मैंने सपने बुनने
छोड़ दिए हैं
कल तक के वे सपने
मेरी मुट्ठी में
आ गए हैं ।