भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सब बिलाड़ हन देश के रक्षक / जयराम दरवेशपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बंदर बन ठन नाच रहल हे
भीड़ हे भारी भालू के
ई धरती पर पूछ हो भइया
सचकोलवन सब गालू को

गाल बजावऽ तुकऽ मिलावऽ
तेरे मुँह मलाय उड़इवा
धैल जमाना चालू के
मिठ मोहना मिसरी बोली
फोर जोर नित
करे ठिठोली
दुर्गति सगरे हे किसान के
पूछला जाके कालू के

उड़न खटोला
कार हे ओकरे
सत्त अउ सरकार हे ओकरे
व्यापारी हे राजनीति के
भजवे मोती बालू के

सड़सठ साल के तोंदू भक्षक
सब बिलाड़ हन देश के रक्षक
असुरता के
राग में नाचे
रूप रचल हलालू के।