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सभी के लिए सुंदर आवाजें (कविता) / नरेश अग्रवाल

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मेरे सुख में सिर्फ मेरा सुख नहीं था
औरों को भी साथ रखना था
सभी के लिए सुन्दर आवाज
चीख से कोसों दूर
और एक तरफ खड़ा होना था मुझे
गहरे में स्थापित वृक्ष की तरह
दूसरी ओर उनके लिए भी फल और फूल।
सभी आकर छाया में बैठते हैं
और जो सचमुच थकते हैं
कितने आत्मतृप्त लगते हैं,
मैंने कहा मुझे थोड़ा समय दो
फिर से दो, नये कुएं में भरे
निर्मल जल सी जिन्दगी
जिसमें नजर आता हो सब कुछ
साफ और सुंदर तैरता हुआ
और मेरा प्रतिबिम्ब
उसके हृदय में समाता
और बाहर निकलता हुआ।