भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सभी मौन हैं गुनगुनाए न कोई / सूर्यपाल सिंह
Kavita Kosh से
सभी मौन हैं गुनगुनाए न कोई।
नए ओज के गीत गाए न कोई।
कहीं पर न कोई सुआ बोलता है?
सभी हैं डरे सच बताए न कोई।
बड़े हाथ जिनके नियम से परे वेे,
सही पाठ उनको पढ़ाए न कोई।
यहाँ हथकड़ी है, पुलिस है, कचहरी,
बिना दक्षिणा राह पाए न कोई।
विवष जो उन्हीं के लिए सब नियम हैं,
उन्हें बढ़ भरोसा दिलाए न केाई।
सुनो देष को दृश्टि देना ज़रूरी,
वही आज जज़्बा जगाए न कोई।