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समझौतों की बेड़ी में / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
समझौतों की बेड़ी में जब देश बेचारा अपना है।
जितना गिरवी होता जाये, बुलंद सितारा अपना है।
रुकी हुई है देश की सेना, अपनों ही की साज़िश है,
फिर भी आगे बढ़ते रहना, लक्ष्य हमारा अपना है।
भ्रष्टाचार के अंगद ही ने, अपना पाँव पसारा है,
दहशत गरदों ने फैलाया, धुप्प अन्धेरा अपना है।
बारूदी सुरंगी बस्ती-बस्ती, बिछी हुई भी देखी है,
ख़ौफ़ से जिसके सहमा-सहमा, हर बनिहारा अपना है।
कारपोरेट की दुनिया लगती, आफ़त लाएगी ‘प्रभात’,
देखो इसने नए सिरे से, पाँव पसारा अपना है।