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समय और मेरा मैं / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
समय एक कुल्हाड़ी है
मैं एक वृक्ष
वृक्ष को कटते देख
मेरा ‘मैं’
तेज-तेज चलने को प्रेरित हुआ।
और मैं दौड़ने लगा हूँ।
मैं जानता हूँ
जो दौड़ता है
वह गिरता भी है
मुझे यकीन है
मेरे गिरने पर
लोग हँसेंगे
कोई मुझे उठायेगा नहीं
हँसकर चल देगा
क्योंकि उसकी आदत है
एक दिन मैं
सच में गिर गया
अपनी गली के चौरास्ते पर
मुझे किसी ने नहीं उठाया।
मैं गिरा रहा
लोग हँसते रहे
सोचता हूँ
आदमी कब तक यूँ हँसता रहेगा ?