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समय को पी रहा हूँ मैं / केदारनाथ अग्रवाल

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समय को पी रहा हूँ मैं
पानी की तरह
मुझको पी रहा है समय
गंध की तरह
न चुका समय
न चुका मैं
हम जी रहे
दोनों
एक दूसरे के लिए।

रचनाकाल: २४-०८-१९६७