भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरकती प्यार की चुनरी / ज्योति खरे
Kavita Kosh से
बाँध कर पास रखना
तुम्हारा काम है
मैं पंछी हूँ
उड़ जाऊँगा
तुम अकेले ताकते रहना
अपनों से में
जुड़ जाऊँगा..............
साथ रहते अगर
प्यार में उड़ना सिखाता
स्वर्ग के साये में
आसमान का अर्थ बताता
तुम नहीं तो क्या करूँ
मैं अकेला
फड़फड़ाऊँगा
बैठकर आँगन में जब
चावल चुनोगी
सरकती प्यार की चुनरी
स्मृतियों के साथ रखोगी
चहकोगी चिड़िया बनकर
मैं भटकता
घर तुम्हारे
मुड़ आऊँगा