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सरो के दरख़्त जैसी रौशनी मेरे सामने है / नवल

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सरो के दरख़्त जैसी रौशनी मेरे सामने है
और पलकों ने झपकना बंद कर दिया है

हवा के तेज़ झोंको ने दरया में लहर पैदा कर दी है
और एक कश्ती अपना लंगर तोड़ मौजों में बह आई है

दिल एक नाचीज़ हिस्से ने सिर उठाया है
और जंगल में एक आग फैलती चली गई है

मैंने अपने आपको तन्हा महसूस किया
और एक साया मेरा हमक़दम हो गया।

सरो का दरख़्त=एक सदाबहार पेड़ जो हमेशा सीधा तना खड़ा रहता है (उर्दू-फ़ारसी की शायरी में सुन्दर देहयष्टि की उपमा इससे दी जाती है)।