भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साँवरे को दिल चुराना आ गया / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
साँवरे को दिल चुराना आ गया
प्रेम की वंशी बजाना आ गया
रात मावस की अँधेरी में भी अब
पाँत दीपों की सजाना आ गया
खा रहा नवनीत मटकी फोड़ कर
गोपियों का मन लुभाना आ गया
राधिका सन्देश भँवरे से कहे
साँवरे को भूल जाना आ गया
रोज वो भेजे हवा को द्वारिका
पर उसे करना बहाना आ गया
साँवरे को भूल वो सकता नहीं
है जिसे भी दिल लगाना आ गया
अब धरा के अश्रु थमते ही नहीं
याद तुमको ही बुलाना आ गया
तीर यमुना के रचाया रास जब
याद फिर गुजरा जमाना आ गया
तुम हमारे हो यही हूँ जानती
बस इसी से गुनगुनाना आ गया