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साँवरे यदि द्वार आओगे नहीं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
साँवरे यदि द्वार आओगे नहीं।
तो हमारा प्यार पाओगे नहीं॥
भूल जाओगे हमारा गाँव तो
प्रेम कुब्जा से निभाओगे नहीं॥
बाँसुरी की धुन बड़ी मीठी पिया
क्या उसे फिर से बजाओगे नहीं॥
कोख में यदि मार दोगे बेटियाँ
वंश फिर अपना चलाओगे नहीं॥
नारि पुरुषों का घटा अनुपात तो
प्रेमिकाओं को रिझाओगे नहीं॥
है मना पाना हुआ आसान कब
तुम कभी अब रूठ जाओगे नहीं॥
काट दोगे निर्दय बन वृक्ष सब
श्वांस हित भी वायु लाओगे नहीं॥