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साथ- 2 / नवनीत शर्मा
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साथ
तन्हा होने का विलोम नहीं
पर्यायवाची है
दुख हो या टीस
बांटना प्रचार की सहमी हुई शुरूआत है
सारा शहर, मुल्क
साथ-साथ
उठता है
साथ-साथ जागता है
साथ-साथ चुनता है रास्ते
साथ-साथ लौटता है घर
मगर दुख अपना शिकार खुद चुनते हैं
फिर भी मैं तुम्हारे साथ हूं।