भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सार्थकता / शलभ श्रीराम सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिना कहे कहा है जो कुछ तुमने
उसका एक भी हिस्सा अगर बचा रहा मेरे पास
मेरे शब्दों के अर्थ नित नए होते रहेंगे

शब्दों के नए अर्थ
किसी के दिए हुए मौन से उपजते हैं
उपजता है उसी से वाणी का वर्चस्व

वाणी का वर्चस्व यह मेरा
कि शब्दों के नए अर्थ
तुम्हारे लिए प्रार्थना में ढलें
मेरा निवेदन तुम तक पहुँचे
पहुँचता रहे मेरे बाद ...
इसी में है इसकी सार्थकता।

फूल हों कि शब्द
उनकी सार्थकता निवेदित होने में है।


रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा