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साहिल के० दहिया के लिए / कांतिमोहन 'सोज़'

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(यह पुरानी ग़ज़ल साहिल के० दहिया के लिए)

ज़िक्र जब उसका आ गया होगा।
एक सकता सा छा गया होगा।।

आज तू उसका इन्तज़ार न कर
कल वो भूले से आ गया होगा।

रोएँगे हम वो मुस्कुराएँगे
उनकी महफ़िल है और क्या होगा।

मैं न कहता था और ज़ुल्म न कर
हुस्न कुछ और भी सिवा होगा।

ये जो एक बाब है मोहब्बत का
ख़ूने-दिल से लिखा गया होगा।

दर्द करता था मेरी दिलजोई
वो भी थककर चला गया होगा।

सोज़ की बात का भरोसा क्या
कोई क़िस्सा सुना गया होगा।।

31-7-1995