भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सीट के ऊपर नहीं हैं सा’ब / रामकुमार कृषक
Kavita Kosh से
सीट के ऊपर नहीं हैं
सा’ब
सोफ़े पर जमे हैं
और उन तक पहुँच पाएँ आप...
तौबा !
आदमी हो आप
अफ़सर वे
बिज़ी हैं
जान बेशक एक
पर सबके निजी हैं,
हाथ पैमाना नहीं
लो नाप...
तौबा !
ख़्वाब में हैं आप
वे
सोए नहीं हैं
खोजते ईमान
खुद खोए नहीं हैं,
सुन सकोगे
हो रहा जो जाप...
तौबा !
11-9-1976