भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुअरवा ! / राकेश रंजन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घिरा पिल्लुओं से, जोंकों से
असह बदबुओं के झोंकों से
थूथन पर गन्दगी उठाए
करता पंक-विहार सुअरवा

पंक-अरगजा अंक लपेटे
पंक-अंक का अन्तर मेटे
पंक-पाग सर पर थकियाए
बना पंक-सरदार सुअरवा

मैं भरमाता, विस्मित होता
सोच-सोचकर सुध-बुध खोता
तुमने ही जल-प्रलय में किया
धरती का उद्धार सुअरवा

तुमरी जै-जैकार सुअरवा
तुमको है धिक्कार सुअरवा !