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सूना घर/ भावना कुँअर
Kavita Kosh से
सूखती नहीं
आँखों से नमी अब
नाकाम हुई
हर कोशिश यहाँ।
समझी नहीं
मैं हुई क्यों अकेली?
घोंटा था गला
अरमानों का मैंने
पर तुमको
सब-कुछ था दिया,
जाने फिर क्यों
हमें मिली है सज़ा
हो गया घर
एकदम अकेला
न महकता
अब फूल भी कोई
सूना है सब
न पंछियों- सा अब
आँगन चहकता।