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सो रहा संसार सारा / छाया त्रिपाठी ओझा
Kavita Kosh से
जागकर तारे गिनूँ मैं
सो रहा संसार सारा।
नेह अपना लुट चुका पर
याद अपने हाथ है !
नींद पीहर को गयी है
चाँदनी पर साथ है !
आह भरती है निशा ये
ढूँढता है मन किनारा !
जागकर तारे गिनूं मैं
सो रहा संसार सारा।
नाम प्रिय के इस नयन में
टिमटिमाता दीप है !
खो गया अनमोल मोती
कश्मकश में सीप है !
मुस्कुराकर व्योम पूछे
कौन था इतना वो प्यारा।
जागकर तारे गिनूँ मैं
सो रहा संसार सारा।
महमहाती रातरानी
आज ताने कस रही !
एक तन्हाई हमेशा
कल्पना को डस रही !
वक्त की अठखेलियों में
कौन देता है सहारा !
जागकर तारे गिनूँ मैं
सो रहा संसार सारा।