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सोच सोच आँखों में पानी / धीरज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सोच सोच आँखो मे पानी
भर भर आता है ।
कहने को तो कह देते सब
कौन निभाता है ।
उम्मीदों मत शोर मचाओ
मुश्किल से वो सोया है !
दर्द हमारा आज अकेले
बैठ देर तक रोया है !
सन्नाटों की सुन आवाजें
दिल घबराता है ।
अँधियारों से मिलकर मैंने
घर को खूब सजाया है !
उजियारों ने साज़िश रचकर
अंतस को बहलाया है !
जाने क्योंकर कोई इतना
मन को भाता है ।
रोज चाँदनी मुझसे मिलने
छत पर आया करती थी !
सतरंगी सपने चुन चुन कर
निंदिया लाया करती थी !
नही ख़यालों से मेरे वो
मौसम जाता है ।
टूटी माला के मनकों सा
अब तो बिखर गया हूँ मैं !
मुख को आँसू से धोकर अब
कितना निखर गया हूँ मैं !
गया भरोसा साथ किसी के
कहाँ विधाता है ।